ख़्वाब हर दिल को दिखाया जा रहा है
दिल से हर ग़म को मिटाया जा रहा है
वक़्त भी रुकता नहीं है और इसे भी
सबके सपनों पर सजाया जा रहा है
सहन-ए-दिल ख़ाली हुआ जाता है क्यों कर
किस को इस दर से भगाया जा रहा है
बाग़बाॅं की ज़िंदगी है बाग़वानी
भौंरा गुलशन में बसाया जा रहा है
देख लो वह सामने बैठी हैं मेरे
ख़ून उन आँखों से बहाया जा रहा है
रात ज़ुल्फ़ों की तरह लंबी बहुत है
ख़ामुशी में रक़्स पाया जा रहा है
As you were reading Shayari by Zohair Ahmad Sahil
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