यार होने का ज़रा फ़र्ज़ निभाते जाते
ज़ख़्म अच्छा सा मेरे दिल पे सजाते जाते
शाम होते ही कहाँ डूब चले तुम सूरज
चाँद को रात का रस्ता तो दिखाते जाते
नींद से दूर मैं ये रात गुज़ारूँ कैसे
कुछ दिए ख़्वाब के आँखों में जलाते जाते
छिप गए मुझसे बहुत दूर है अच्छा लेकिन
अपने पैरों के निशाँ भी तो मिटाते जाते
लौट आने का कोई झूट ही कहते जाते
जाते जाते कोई उम्मीद जगाते जाते
देखने वाले हो तुम मुझको ख़रीदोगे नहीं
कम से कम दाम ही अच्छे से लगाते जाते
अब के मौसम ने बहुत दर्द दिया है वर्ना
ज़ख़्म पे ज़ख़्म यूँ हँस कर ही भुलाते जाते
चाहतें जिसकी थी मुझको वो अगर मिल जाता
मौत से मिलने भी हम नाचते गाते जाते
Read Full