न ख़ातिर-ख़्वाह मुझसे कुछ छुपाया कर
न बे-दिल मैं, न इतना तो पराया कर
मिला हो दर्द जिसको दर्द ही देगा
बे-मतलब ऐसी बातों में न आया कर
ब-मुश्किल मिलते दिल से चाहने वाले
के सच ये ठीक से दिल को बताया कर
है खोटे जब नज़र में सब ही दुनिया की
तो हो बे-फ़िक्र ये जीवन बिताया कर
मिटे क्यूँ सपने रूठे क्यूँ कई अपने
ये चुभते ख़्याल मत मन में बिठाया कर
ग़ज़ल तोहफ़ा ये कर स्वीकार 'आभा' का
मिलेगी ज़ीस्त ग़ज़ले गुनगुनाया कर
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