गर यही होगा रवैया तो गए तुम काम से
तुमको तो मेहनत भी करनी है वो भी आराम से
बे-सर-ओ-पा होगा जलसा इब्तिदाई का वहाँ
जाना जाता है जहाँ हर आदमी अंजाम से
जानता हूँ आख़िरश जीतोगे तो तुम ही मगर
दूर रखना है तुम्हें कुछ देर इस इनआम से
तुम ही हो बाद-ए-सबा तुम ही बहारों का निशाँ
कितने गुल डरते हैं मेरी जाँ तुम्हारे नाम से
उन उजालों से तुम्हें क्या ख़ाक हिम्मत आएगी
ख़ौफ़ खाते हैं जो ख़ुद ही आने वाली शाम से
As you were reading Shayari by Achyutam Yadav 'Abtar'
our suggestion based on Achyutam Yadav 'Abtar'
As you were reading undefined Shayari