तीरगी राह में इक अकेला चराग़ाँ सितारा तू है
जो लगा दे किसी दश्त में आग वो इक शरारा तू है
जिसकी सारी तवक़्क़ो ही मर जाती हों उसकी वो आख़िरी
इक परी चेहरा -ए- फ़र्द जिसको ख़ुदा ने उतारा तू है
मर रहे हैं अज़ल से जो जीने के ख़ातिर किसी जंग में
ख़त्म हो जिस से वो जंग वो इक ख़ुदा का इशारा तू है
हम लिखें तो मेरी जान क्या ही लिखें अपनी हर नज़्म में
जब हमारी हर इक नज़्म के मिसरे में इस्तिआरा तू है
फिर रहे हैं जो फ़ुर्क़त के दरिया लिए दर ब दर चश्म में
उनके वहशत के आलम में उल्फ़त फ़ुग़ान -ए- सहारा तू है
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