ख़ुदा फ़रिश्ते पयम्बर बशर किसी का नहीं
मुझे लिहाज़ तो सबका है डर किसी का नहीं
ये ज़िद भी है मेरी मुझको किसी का होना है
ये शर्त भी कि उसे छोड़कर किसी का नहीं
ये चाँद किसका है जल्दी बताओ किसका है
तो क्या मैं तोड़ लूँ इसको अगर किसी का नहीं
ये कुछ ज़रूरी नहीं है वो और किसी का न हो
ज़रूर होगा मगर इस क़दर किसी का नहीं
हैं शहर में मेरे वैसे तो इतने रिश्तेदार
पर उस परी के मुहल्ले में घर किसी का नहीं
कोई तो पूछे तुम्हें इंतज़ार किसका है
मैं सोचूँ और कहूँ सोचकर किसी का नहीं
हमें किराए पे रहना है दिल किसी का भी हो
किसी का यानी किसी का हो हर किसी का नहीं
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