पहचान हो गई है जब से खरे ग़मों की
करने लगे हिफ़ाज़त तेरे दिए ग़मों की
ये लेन देन जाने कब हो गई हमारी
मैं बस मेरे ग़मों का तू बस तेरे ग़मों की
रुख़सत किया है सबको हर बार ही ख़ुशी से
मेरे ग़मों को काटे आमद नए ग़मों की
इक तेरे जाम ही नइँ आँखों के मयकदों में
बस तेरा हिज्र ही नइँ सफ़ में मेरे ग़मों की
लो मैं निकालता हूँ मुस्कान इन लबों पर
अब माँगना न चाबी मेरे छिपे ग़मों की
हम अब तलक़ भले थे शामिल थे सब ख़ुशी में
लगने लगे बुरे हम गिनती बढ़े ग़मों की
Read Full