उसने वादा किया था आने का
था मगर वो भी इस ज़माने का
शुक्र है घर कोई नहीं आया
जब ठिकाना नहीं था खाने का
क्यूँ ख़ुशी हो अगर मिलें अब हम
ज़ख़्म गहरा है दूर जाने का
क्या तुझे चाहता है अब कोई
या पता मिल गया ख़ज़ाने का
अब मुक़ाबिल नहीं हैं हम दोनों
ये है पल राब्ता निभाने का
वो सहारा नहीं रहा मेरा
सो बहाना है डगमगाने का
तेज़ बारिश में बाम-ओ-दर को क्यूँ
हक़ नहीं होता थरथराने का
मुझको रातें जगा रही हैं तो
दिन को क्यूँ हक़ नहीं सुलाने का
नाम पर उसके ये कहानी थी
इंतिहा क्या लिखें फ़साने का
देता दस्तक तो खुल गया होता
घर उसी से था आस्ताने का
इक वजह था वो गुनगुनाने की
इक बहाना था मुस्कुराने का
आ गया हूँ उड़ान भरने मैं
हौसला मुझमें लड़खड़ाने का
कैसे कोई करे रिहा उसको
जो सिपाही हो क़ैद ख़ाने का
हर घड़ी नाम साथ 'गर रहता
होता कोठा भी घर घराने का
कौन हसरत तेरी करे चेतन
शौक़ सब कुछ तुझे गँवाने का
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