तेरे दर पर ये सहूलत तो मिली है
सुर्ख़ आँखों से ही रुख़सत तो मिली है
जो नहीं दिखता उसे पा सकते हैं हम
ए ख़ुदा तुझको इबादत तो मिली है
दूर तुझसे जो भटकना चाहते हैं
उनको भी तेरी सियादत तो मिली है
अब बिछड़ने पर शिकायत क्या करें हम
उसकी आँखों में नदामत तो मिली है
है नया क्या इसमें ये पहले हुआ है
जब मोहब्बत की अज़िय्यत तो मिली है
बाद खोने के तुझे सब खो रहा हूँ
तुझको पाने की निहायत तो मिली है
तेरे होंठों से मिले 'हाँ' तो मिलें हम
तेरी आँखों से इजाज़त तो मिली है
लेना है बर्बाद होने का तजुर्बा
लौट जाने की हिदायत तो मिली है
चाय में चीनी नहीं है तो हुआ क्या
तेरे हाथों की शरारत तो मिली है
तेरे ख़त का वादा ख़तरे में पड़ा था
उसको बटवे में हिफ़ाज़त तो मिली है
मुझसे मिल कर और सबको क्या मिला है
बस बिछड़ने की ही आदत तो मिली है
तेरी यादें मुझसे अब क्या चाहती हैं
बहर में इनको इक़ामत तो मिली है
तेरी मेरी हार इक जैसी नहीं है
तुझको अपनों की वकालत तो मिली है
जो लिखे थे तुमने वो वादे मिटे हैं
बेंच पर मेरी इबारत तो मिली है
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