किसी मुफ़लिस को जिसने मारी टक्कर है
अरे कमबख़्त वो पेशे से अफ़सर है
गई है बोलकर "पीना नहीं तुम"और
हमारा मयकदे के पास में घर है
तो उस दिन हाथ की जानिब न जाता ध्यान
वो लाती जिस दिन अपने साथ ख़ंजर है
मेरी साँसें उखड़ती जा रहीं यानी
तबीअत अब मेरी पहले से बेहतर है
जहाँ पर सिर कटाकर मिलती हो मंज़िल
वहाँ पर किसको यारों मौत का डर है
बहुत हिम्मत से झेले वार शीशे ने
मगर करता ही क्या,पत्थर तो पत्थर है
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