हम महीनों तक कहीं शमशान में ज़िंदा रहे
हम तेरी आमद के इक इमकान में ज़िंदा रहे
हम कहानी से निकाले जा चुके क़िरदार हैं
हाँ वही क़िरदार जो उनवान में ज़िंदा रहे
हम सुख़न वालों की क़िस्मत में ख़ुशी दो चार पल
दर्द वो जो उम्र भर दीवान में ज़िंदा रहे
इश्क़ में बिछड़े हुए ये लोग ज़िंदा हैं मगर
जैसे कोई मोरनी जिंदान में ज़िंदा रहे
मुफ़्लिसी लोबान सी महके है सारी उम्र भर
ये फ़क़ीरों के उसी लोबान में ज़िंदा रहे
पूरे घर में धूप का साया है कोई धूप नइ
धूप वो जो शाम तक दालान में ज़िंदा रहे
ये ज़माना शहर की गुंजान में तन्हा मरे
मीर वो है जो कहीं वीरान में ज़िंदा रहे
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