समझ आएँगे इक दिन हम हमारे घर के लोगों को
यही उम्मीद काफी है मेरे लश्कर के लोगों को
कहानी लिख रहा हूँ उर्मिला के दुख औ त्यागों की
रुलाना चाहता हूँ मैं सभी पत्थर के लोगों को
यही बारिश किसानों की जरूरत है मगर प्यारे
डराती भी यही बारिश सभी छप्पर के लोगों को
किसी अपने से मिलने में हिचकता हूँ न जाने क्यों
इजाज़त है मेरे दिल में मगर बाहर के लोगों को
मुहब्बत का रिहर्सल मुझसे करने वाली लड़की तुम
अदाकारी दिखाती हो ज़माने भर के लोगों को
कई दिन से पड़ा हूँ मैं किसी कमरे के कोने में
बहाने दे रहा हूँ रोज मैं दफ़्तर के लोगों को
उदासी में सुनाता हूँ जिगर और जॉन की ग़ज़लें
कभी बाहर के लोगों को कभी भीतर के लोगों को
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