कभी इन्कार करते है, कभी इक़रार करते हैं

  - Rohit Gustakh

कभी इन्कार करते है, कभी इक़रार करते हैं
चुराते हैं कभी नज़रें,कभी वो चार करते हैं

धड़कता है जो सीने में, हमारा दिल उन्हीं का है
गवाही दे रही धड़कन, वो हमसे प्यार करते हैं

मुहब्बत है हमें उनसे , मुहब्बत है उन्हें हमसे
मगर ख़ामोश हैं क्यूँ लब,चलो इज़हार करते हैं

  - Rohit Gustakh

More by Rohit Gustakh

As you were reading Shayari by Rohit Gustakh

Similar Writers

our suggestion based on Rohit Gustakh

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari