ज़ुल्म ढाएगा सितमगर, उम्रभर

  - Harshad B tiwari

ज़ुल्म ढाएगा सितमगर, उम्रभर
हम कहेंगे बस मुकर्रर, उम्रभर

इक शिकन मौजूद सरपर उम्रभर
घर से दफ्तर और फिर घर, उम्रभर

वस्ल की अब मुस्तक़िल तारीख़ दे
कब तलक बदलें कलेंडर,उम्रभर

सबके ख़ातिर हम उगाते है अनाज
हमको रोटी हो मयस्सर उम्रभर

कौन मेरा कातिब ए तक़दीर था
है बवंडर ही बवंडर , उम्रभर

और जीने के लिए क्या चाहिए
मश्क़, माइक और मिम्बर, उम्रभर

  - Harshad B tiwari

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