कहीं ऐसा न हो वो और भी बेज़ार हो जाए
हमारे इश्क़ का उस शोख़ पर इज़हार हो जाए
यही तो सोचकर शामिल हुआ महफ़िल में मैं तेरी
किसी सूरत सर-ए-महफ़िल तेरा दीदार हो जाए
मेरे दुश्मन अगर तुम हो तो मेरी जान भी ले लो
अजब लगता नहीं दिल इश्क़ का बीमार हो जाए
ज़बाँ को इस क़दर तू बा-असर कर दे मेरे मालिक
दुआ करता हूँ मैं सबके लिए साकार हो जाए
नहीं हो फ़िक्र कुछ अपनी मैं ऐसे होश को खो दूँ
मुझे अंगूर की बेटी से इतना प्यार हो जाए
उसे भी चाँद सी दुख़्तर अता कर दे मिरे मौला
उसे भी अपनी ख़ुद्दारी से कुछ पैकार हो जाए
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