नहीं मालूम है मुझको मैं कैसे शेर कहता हूँ
मगर सब लोग कहते हैं मैं अच्छे शेर कहता हूँ
मैं पहले मतला कहता हूँ फिर आगे शेर कहता हूँ
मेरा दिल चाहता है जितने उतने शेर कहता हूँ
कोई भी हो कहीं भी हो मैं जिसको ढूँढता हूँ वो
मुझे मिल जाएगा इक दिन सो ऐसे शेर कहता हूँ
कई लोगों की मुझसे ये शिक़ायत है कि मैं उनसे
कभी जो पूछता हूँ हाल पहले शेर कहता हूँ
बहुत अच्छा नहीं हूँ मैं बस इक ये मुझमें ख़ामी है
बुरा जो मुझको कहते हैं मैं उनपे शेर कहता हूँ
मुझे कोई गिला नइँ तुम से धाँ धाँ मारते हो तुम
तुम्हें फिर क्या गिला मुझसे अगरचे शेर कहता हूँ
बताते हो सभी के सामने क्यूँ तन्ज़िया शायर
न तुम पर तंज़ कसता हूँ न तुम पे शेर कहता हूँ
मुझे भी शौक़ था मिसरों में अपनी बात कहने का
हुनर आया है जब से ये मैं तब से शेर कहता हूँ
कई लोगों को मैं यूँ भी पसंद आता नहीं हूँ क्यूँकि
मैं सच्चे शेर कहता हूँ मैं कड़वे शेर कहता हूँ
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