जब से हुए हैं दूर किसी आदमी से हम
हम से ख़फ़ा है ज़िन्दगी और ज़िन्दगी से हम
ये लोग उनके नाम से क्या क्या न कर रहे
मिलकर कहेंगे राम से माँ जानकी से हम
अब और इश्क़ की हमें आदत नहीं रही
जा थक चुके हैं यार तेरी आशिक़ी से हम
जैसे कि पूछ लेगा कोई इम्तिहान में
सुनते थे उसकी बात यूँ संजीदगी से हम
अब दिल ठिकाने पर है न ये ज़ेहन ही दुरुस्त
पगला गए हैं लौट कर उसकी गली से हम
इक रोज़ यूँ हुआ कि सभी शिकवे भूल कर
फिर आ गए थे दोस्ती में दुश्मनी से हम
दो नाव पर सवार थे सो डूबना ही था
पार इक से हो सके न हुए दूसरी से हम
पंद्रह बरस के बाद भी बदला तो कुछ नहीं
उम्मीद क्या ही रक्खें अब इस नौकरी से हम
छुप छुप के मिल रहा था तू राधा से ख़्वाब में
चुगली करेंगे कृष्ण तिरी रुक्मिणी से हम
तू बावफ़ा रहे या रहे हमसे बेवफ़ा
बढ़कर तो आज भी नहीं तेरी ख़ुशी से हम
आँगन के जो दरख़्त थे सारे बबूल थे
ता-उम्र जूझते रहे गुल की कमी से हम
हर तीर था हमारे ही तरकश का इसलिए
सब वार सह गए बड़ी शाइस्तगी से हम
दुख सोचकर बता मकीं पत्थर हैं नींव के
मंसब ही छोड़ दें न ज़रा सी नमी से हम
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