बस तुम्हारी दूरियों में पास ग़म है
ना-मयस्सर होने का एहसास ग़म है
ना-मयस्सर ही रहा वो हर तरह से
राएगाँ मेरा रहा इख़्लास ग़म है
दावा करते थे फ़क़त दीदार का जो
चूमकर क़ाएम है उनकी प्यास ग़म है
दस्तयाबी है अजब दुश्वार सा फ़न
और रहा दिल भी मिरा बे-आस ग़म है
बस कि हाल-ए-दिल न पूछो श्रेय हमसे
आम है मसरूर हर पल ख़ास ग़म है
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