मिल गया है जो ख़सारा है बहुत

  - Muntazir shrey

मिल गया है जो ख़सारा है बहुत
वहम आए न दुबारा है बहुत

तू न ज़हमत ज़रा कर बोलने की
पलकें झपका कि इशारा है बहुत

है न दरकार तुम्हें अपना करूँ
बन गया हूँ जो तुम्हारा है बहुत

कर कभी यूँ कि उसे कह पाऊँ
बस ये जो तुमने पुकारा है बहुत

ज़ेहन आबाद नहीं करना हमें
याद का उसकी सहारा है बहुत

फ़र्क़ क्या अहल-ए-जहाँ से मुझ को
बस तुम्हें हूँ जो गवारा है बहुत

  - Muntazir shrey

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