“मुंतज़िर”

  - Muntazir shrey

“मुंतज़िर”

हम चाहते हैं यूँ जिन्हें उन की हमें
बस उम्र भर की ख़ैरियत की चाह है
जैसे कि सच वो लौट आएँगे कभी
दीदा-ओ-दिल इस तौर फ़र्श-ए-राह है

हम कब भला उनको नज़र में भर सके
थी देखने की ख़्वाह उनको जो रही
यूँ जो कभी मिलता हमारा रहगुज़र
थी चाह उनको देख लेते इक नज़र
कोई न थी उम्मीद पर जीते रहे
बस उम्र भर तस्वीर उनकी देख कर

महरूम हम दाइम रहे उस लम्स से
हमसे मुख़ातिब हो सके वो पल नहीं
हम ज़ुल्फ़ को उनकी सँवारें भी कभी
मुद्दत हुई दिल में बस इक ये ख़्वाह है
हम चाहते हैं यूँ जिन्हें उन की हमें
बस उम्र भर की ख़ैरियत की चाह है
जैसे कि बस वो लौट आएँगे कभी
दीदा-ओ-दिल इस तौर फ़र्श-ए-राह है

  - Muntazir shrey

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