गुलाल-ए-इश्क़ उड़ता है नज़ारे और होते हैं

  - Vikas Shah musafir

गुलाल-ए-इश्क़ उड़ता है नज़ारे और होते हैं
फ़लक पर रंग बरसे तो इशारे और होते हैं

हवा में घुल गई ख़ुशबू नज़र का हाल मत पूछो
तेरी रंगीन चाहत के सितारे और होते हैं

नशा है रंग का ऐसा कि अपना होश गुम सा है
गुलाल-ए-इश्क़ जब बिखरा नज़ारे और होते हैं

ग़ज़ब ये इश्क़ की रंगत नज़र से दिल तलक पहुँची
मिले जो फागुनी शोख़ी शरारे और होते हैं

मुसाफ़िर रंग में खोया हुआ है बेख़बर सबसे
मगर जब रंग उतरे तो किनारे और होते हैं

  - Vikas Shah musafir

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