मोहब्बत कम नहीं हम से ज़ियादा भी नहीं हम से
वो मिलता भी नहीं हम से बिछड़ता भी नहीं हम से
किसी से कह न पाएँ और समझता भी नहीं कोई
अजब ग़म है मोहब्बत का ये छुपता भी नहीं हम से
मुख़ालिफ़ के मुक़ाबिल हम खड़े हो ही नहीं सकते
अना की वज्ह लेकिन सर ये झुकता भी नहीं हम से
हम उस को देखते हैं जब ख़याल आता है दिल में ये
वो हम से प्यार भी करता है कहता भी नहीं हम से
बता कैसे उठाएँगे सब उस के नाज़-नख़रे हम
कोई रूठा हुआ इंसान मनता भी नहीं हम से
न जाने ख़ुश-दिली लाते कहाँ से हैं ये सारे लोग
कोई रोता हुआ बच्चा तो हँसता भी नहीं हम से
हमारे दरमियाँ कैसी हुई है इश्क़ की ये जंग
तू हारा भी नहीं हम से तू जीता भी नहीं हम से
'मिलन' जो प्यार तुम इतना हमेशा देते हो हम को
ये इतना प्यार तो दिल में सँभलता भी नहीं हम से
As you were reading Shayari by Milan Gautam
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