ज़ेहन से तेरे तिरे दिल तक तिरा उन्माद हो कर
मैं बहुत याद आऊँगा तुझ को तिरी हर याद हो कर
रफ़्ता-रफ़्ता एक दिन लग जाएगी तुझ को मिरी लत
फिर बिछड़ जाऊँगा इक दिन मैं तिरी फ़रियाद हो कर
मैं कि ऐसा तुख़्म जिस को दफ़्न कर दोगे अगर तुम
मैं खिलूँगा फिर वहीं हर शाख़ पर आबाद हो कर
हिज्र की सारी दवाएँ मुंक़ज़ी अब हो चुकी हैं
तू दोबारा पास आ जा मेरी जाँ ईजाद हो कर
इश्क़ से आबाद अब तक कौन दुनिया में हुआ है
जो भी घर वापस गया वो लौटा है बर्बाद हो कर
दफ़्न होना है सभी को इक न इक दिन मिट्टी में पर
कोई होगा ख़ाक काम आएगा कोई खाद हो कर
तू हो गंगा या हो जमना दूर मुझ से जाएगी गर
मैं तिरी राहों में आऊँगा इलाहाबाद हो कर
मैं ने ग़म के साथ अच्छी दोस्ती कर ली मिलन अब
जी रहा हूँ मैं ख़ुशी से दिल ही दिल नाशाद हो कर
Read Full