मुझे वो ही नज़र आता जिधर मेरी नज़र जाए
भला ऐसे में दिल उसको भुलाकर भी किधर जाए
बड़े नादान हो गर इश्क़ को आसाँ समझते हो
नशा ऐसा नहीं है ये जो पल भर में उतर जाए
तसव्वुर में नज़र आता फ़क़त चेहरा मुझे जिसका
सँवरने बैठ जाए वो तो आईना बिखर जाए
मैं तन्हाई का मारा हूँ मेरा हाकिम मेरा महबूब
बिना उसके छुए हालत मेरी कैसे सुधर जाए
मुबारक हो अगर कुछ ग़म मयस्सर हैं तुम्हें यारों
उदासी ने भी जिसका साथ छोड़ा वो किधर जाए
उसे कह दो नहीं होती कोई बंदिश मुहब्बत में
मेरा हमराह चाहे छोड़कर जाना अगर जाए
लुटी है बाग़ की ख़ुशबू लुटी है ज़ीस्त की रौनक़
करो सब इल्तिजा मौसम ये जल्दी से गुज़र जाए
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