है मोहब्बतों मैं वो तक सहा कभी जो किसी ने सहा नहीं
मुझे दर्द भी मिला वो यहाँ बनी जिसकी कोई दवा नहीं
ज़रा पास मेरे तो आ सही मिरे ज़ख़्म पर भी हवा तो हो
मुझे आरज़ू तिरे इश्क़ की मुझे चाहिए है दुआ नहीं
ये गली जो तेरी हुई नहीं ये मकाँ जो तेरे ख़िलाफ़ है
तू इधर उधर भी नज़र तो दे यहाँ कौन किस से ख़फ़ा नहीं
मेरा जिस्म तेरा ग़ुलाम ही मेरी रूह तेरा उधार है
उठे जब दुआ में ये हाथ तो सिवा तेरे कुछ की रज़ा नहीं
तेरा इश्क़ मेरा वजूद है ये यक़ीन तेरा मेरी मजाल
हो जो कुछ भी दुनिया ने पा लिया तेरे इश्क़ से तो बड़ा नहीं
वो तमाम रात की कोशिशें हैं घने अंधेरे में दब गईं
कि मिरे किसी भी चराग़ से कोई ख़त्त-ए-नूर बना नहीं
वो भी दर्ज़ है मिरी याद में जो हक़ीक़तों से बुना न था
मुझे ख़्वाब से तिरे इश्क़ वो तुझे मुझसे भी जो हुआ नहीं
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