रौशनी का जगमगाना पहले जैसा अब नहीं
इश्क़ ये तेरा दिवाना पहले जैसा अब नहीं
साथ अपने ले गई तू रंग-ओ-रू इस शहर के
शहर का कोई ठिकाना पहले जैसा अब नहीं
बस गया तू दूर जाकर दहर में इक ग़ैर के
पर तिरा हँसना हँसाना पहले जैसा अब नहीं
वो ही घर है वो ही दर है और वो ही दहलीज़ पर
बाद तेरे आशियाना पहले जैसा अब नहीं
फैल जाते हैं तक़ल्लुफ़ को कभी अब लब मेरे
है मेरा भी मुस्कुराना पहले जैसा अब नहीं
चाँद-रातें तेरी बातें अब नसीबों में कहाँ
तारों का भी टिमटिमाना पहले जैसा अब नहीं
आँखों में बस अश्क लाते ये मोहब्बत खोने पर
आशिक़ों का तिलमिलाना पहले जैसा अब नहीं
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