रौशनी का जगमगाना पहले जैसा अब नहीं - Chetan Verma

रौशनी का जगमगाना पहले जैसा अब नहीं
इश्क़ ये तेरा दिवाना पहले जैसा अब नहीं

साथ अपने ले गई तू रंग-ओ-रू इस शहर के
शहर का कोई ठिकाना पहले जैसा अब नहीं

बस गया तू दूर जाकर दहर में इक ग़ैर के
पर तिरा हँसना हँसाना पहले जैसा अब नहीं

वो ही घर है वो ही दर है और वो ही दहलीज़ पर
बाद तेरे आशियाना पहले जैसा अब नहीं

फैल जाते हैं तक़ल्लुफ़ को कभी अब लब मेरे
है मेरा भी मुस्कुराना पहले जैसा अब नहीं

चाँद-रातें तेरी बातें अब नसीबों में कहाँ
तारों का भी टिमटिमाना पहले जैसा अब नहीं

आँखों में बस अश्क लाते ये मोहब्बत खोने पर
आशिक़ों का तिलमिलाना पहले जैसा अब नहीं

- Chetan Verma
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