पड़े पड़े ये काग़ज़ पैमाने हो जाते हैं
ख़त ख़त नहीं हैं रहते मय-ख़ाने हो जाते हैं
दो अजनबी की यारी कई मोहब्बत तक लाकर
लोग यहाँ क़िस्तों में दीवाने हो जाते हैं
हर कॉलेज के दर पर वादा मिलने का करके
दोस्त बिछड़ते हैं और बेगाने हो जाते हैं
ज़ब्त की मिट्टी में दबकर सब दिल के ये कमरे
आहिस्ता आहिस्ता तह-ख़ाने हो जाते हैं
अपना ख़ूँ देते हैं जो भी मोहब्बत को 'चेतन'
अमर क़सीदों के वो अफ़्साने हो जाते हैं
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