दुनिया में किसी पेड़ को चलते नहीं देखा
मैंने कोई उतना भी बदलते नहीं देखा
जो भी हैं गिरे इश्क़ में मैंने यहाँ उनको
गिर के कभी फिर से है सँभलते नहीं देखा
जिसने नहीं देखा उसे उनको ये बता दूँ
तुमने अभी तक चाँद को चलते नहीं देखा
देखे तो थे दुख मैंने भी सब जान-ओ-जहाँ के
आँखों को यूँ अपनी था पिघलते नहीं देखा
दिल उसमें जो होता तो समझता तुझे चेतन
पत्थर से तो एहसास निकलते नहीं देखा
As you were reading Shayari by Chetan Verma
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