मुश्किल और आसानी में से - Siddharth Saaz

मुश्किल और आसानी में से
एक अगर चुनना हो तो हम
आसानी ही चुनते हैं
मुश्किल बात गले के एवज़
पेट के पास से आती है
उसको बाहर आते आते
एक ज़माना लगता है

मुश्किल है ये कह पाना के
"यार, मुझे ग़म खाता है
जैसे जैसे रात उतरती है
तो रोना आता है"

हो सालों का रिश्ता चाहे
ये भी कहना मुश्किल है
"जब तक ज़ख्म नहीं भरता ये
तू तो हाल सुनेगा ना ?
तू तो बहुत करीब है मेरे
तू तो मदद करेगा ना ?"

बस इतनी सी बात बताने
में सदियां लग जाती हैं
आख़िर में हम बहुत सोचकर
फिर आसानी चुनते है

कह देते हैं, "हां मैं बढ़िया,
मुझको क्या ही होना है"
वो भी 'बढ़िया' कह देता है
बात ख़तम हो जाती है

- Siddharth Saaz
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