माज़ी की याद से हम गुलफ़ाम हो गए - Sanjay Bhat

माज़ी की याद से हम गुलफ़ाम हो गए
थे सख़्त ख़िश्त जैसे अब ख़ाम हो गए

हैं रास्ते बहुत पर कैसे चलूँ यहाँ
मुश्किल बहुत ही चलना दो गाम हो गए

आला सनद मिले थे पढ़ लिख के जो हमें
वैसे सनद तो घर घर में आम हो गए

सब अब लगे बुलाने ताज़ा खिताबों से
बेकार और निकम्मा कुछ नाम हो गए

जीते हैं अब तो अपनों के वास्ते मगर
दिल और समझ से कब के हम साम हो गए

- Sanjay Bhat
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