पहले जो हो चुका था दुबारा नहीं हुआ

  - Shadab Shabbiri

पहले जो हो चुका था दुबारा नहीं हुआ
अच्छा हुआ कि कोई हमारा नहीं हुआ

जिसके लिए कभी तू हमारा नहीं हुआ
अच्छा हुआ वो शख़्स तुम्हारा नहीं हुआ

हम से उलझ के देख लिया ऐ क़रार -ए-जाँ
तेरा किसी भी तौर गुज़ारा नहीं हुआ

मालो-मता-ए-दिल तो लुटाने का अज़्म था
पर क्या करें उधर से इशारा नहीं हुआ

हर बार यह ख़याल गुज़रता है ज़ेह्न से
पहले कभी भी ऐसा ख़सारा नहीं हुआ

तर्क-ए-कलाम उस से ज़रूरी तो था मगर
हम से किसी भी तौर गवारा नहीं हुआ

शादाब थी ज़रूरत-ए-चारागरी मगर
चारा-गरान-ए-शह्र से चारा नहीं हुआ

  - Shadab Shabbiri

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