ज़ब्त को दोस्तों आज़माते रहो
ज़ख़्म खाते रहो मुस्कुराते रहो
दर्द दिल का सभी को सुनाते रहो
हिज्र का उम्र भर ग़म मनाते रहो
जो है वादा वो वादा निभाते रहो
याद करते रहो याद आते रहो
इल्म की रौशनी से ये सारा जहाँ
जगमगाते रहो जगमगाते रहो
हक़ में मज़लूम के तुम सदा बोलना
अपनी औलाद को ये सिखाते रहो
दिल के कूचे में मत होने दो तीरगी
इश्क़ की शम्अ दिल में जलाते रहो
इश्क़ के बिन मुकम्मल नहीं ज़िंदगी
मिसरा मेरी ग़ज़ल का ये गाते रहो
आँखें वीरान हैं दिल परेशान है
ख़्वाब बन के इन आँखों में आते रहो
ग़ज़लें लिखते रहो तुम मेरे हुस्न पर
मेरी तस्वीर को तुम बनाते रहो
ख़ुश-नुमा हो रहा है ये मौसम सुनो
ज़ुल्फ़-ए-पुर-ख़म को यूँ ही उड़ाते रहो
जिसपे आए समर इश्क़ का प्यार का
वो शजर तुम जहाँ में लगाते रहो
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