दुआएँ माँगते हैं बद-दुआ नहीं करते
जो अक़्ल-मंद है वो सब ख़ता नहीं करते
लो अपने दर्द-ए-जिगर की दवा नहीं करते
तुम्हारा आज से हम तज़्किरा नहीं करते
मिरा सलाम हो उन सब पे अपनी बेटी को
चलन के नाम पे जो बे-रिदा नहीं करते
सिखाते आप को आदाब बे-वफ़ाई के
अगर हम आप से अहद-ए-वफ़ा नहीं करते
जो हुस्न वालों से मिलना तो सोचकर मिलना
कोई भी काम ये बे फ़ाएदा नहीं करते
ये दिल किसी का भी इक पल में तोड़ देते हैं
ख़ुदा के बंदे ख़ुदा की हया नहीं करते
तुम्हारे हुस्न पे वाजिब ज़कात होती है
ज़कात हुस्न की क्यों कर अदा नहीं करते
नमाज़-ए-इश्क़ पढ़ी जाती है जवानी में
उठो जवानों उठो ये क़ज़ा नहीं करते
ज़माने वालों हमें साथ साथ रहने दो
कि गुल के जिस्म से ख़ुशबू जुदा नहीं करते
तमाम लोग वो अहमक़ हैं जो ये कहते हैं
हवा की दोश पे रौशन दिया नहीं करते
ग़मों की आयतें होती क़ुलूब पर नाज़िल
हमारे हक़ में अगर तुम दुआ नहीं करते
तमाम उम्र अमल करना इस रिवायत पर
कोई बुरा करे उसका बुरा नहीं करते
तुम्हारी ज़ुल्फ़ का चर्चा कहीं नहीं होता
जो इस पे अहल-ए-नज़र तब्सिरा नहीं करते
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