मैं कभी तेरे बराबर नहीं हो सकता दोस्त
मैं तो मिट्टी हूँ सो पत्थर नहीं हो सकता दोस्त
मैं तेरी आँख का आँसू तो हो सकता हूँ मगर
मैं तेरी आँख का कंकर नहीं हो सकता दोस्त
मेरी तासीर अलग है तेरी तासीर अलग
मैं कभी तुझ सा सितमगर नहीं हो सकता दोस्त
कितनों ने प्यास बुझाई है रवानी में मेरी
चाह कर भी मैं समंदर नहीं हो सकता दोस्त
मैं ज़ियादा से ज़ियादा तेरा हो भी जाऊँ
तू मगर मुझको मयस्सर नहीं हो सकता दोस्त
कम से कम इक दफ़ा तो तय है मुहब्बत में हार
इश्क़ में कोई सिकंदर नहीं हो सकता दोस्त
वो समझता है ग़लत मुझको हर इक बात पे पर
ये यक़ीं है वो सितमगर नहीं हो सकता दोस्त
ख़ुद को ख़ुद में ही छुपाए हुए फिरता हूँ यहाँ
जितना अंदर हूँ मैं बाहर नहीं हो सकता दोस्त
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