अगरचे ज़ख़्म-ए-जिगर को कभी हवा न लगे
तो दर्द क्या है किसी को शजर पता न लगे
हमारे अहद के इन नौजवान बच्चों को
भला बुरा न लगे और बुरा भला न लगे
ये इश्क़ एक बुरा मर्ज़ है मिरे मालिक
जवान बच्चों को ये मर्ज़-ए-ला-दवा न लगे
जिसे भुलाने में सारी हयात लग जाए
कोई किसी को ख़ुदा इस क़दर बुरा न लगे
ख़िज़ाँ ये कोशिशें करती है पूरी कसरत से
किसी भी हाल में गुलशन हरा भरा न लगे
तबीब मुझको बता क्या करूँ फिर इस दिल का
अगर इसे ये तिरी दी हुई दवा न लगे
मिरी ख़ुदा से दुआ है सनम का दीद करो
सनम सनम ही लगे आपको ख़ुदा न लगे
हमें ये ख़ौफ़ सताता है ख़्वाब मरते हैं
हमारी आँख कहीं दश्त-ए-करबला न लगे
ज़माने भर का रखो हमसे फ़ासला लेकिन
हमारे बीच ज़माने को फ़ासला न लगे
दयार-ए-दिल पे रखा है चराग़-ए-इश्क़ शजर
दुआएँ माँगो इसे हिज्र की हवा न लगे
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