बे-ख़ौफ़ राह-ए-हक़ पे गुज़र जाना चाहिए
गर चाहिए हयात तो मर जाना चाहिए
देखा तुम्हें तो ज़ेहन में आया मिरे ख़याल
आँखों के रस्ते दिल में उतर जाना चाहिए
दस्तक ये दिल के दर पे मुहब्बत ने दी उठो
कू-ए-सनम में अहल-ए-सहर जाना चाहिए
तितली ये बोली चूम के गुलशन में फूल को
चूमा है मैंने तुझको बिखर जाना चाहिए
मैं ख़ुद को देखता हूँ हसीं आँखों में तिरी
अब हुस्न मेरा और निखर जाना चाहिए
इक सिम्त में क़ज़ा है तो इक सिम्त ज़िंदगी
मैं सोच में हूँ मुझको किधर जाना चाहिए
ग़ैरत ये कह रही है मिरी चीख़ चीख़कर
दस्तार कोई छीने तो सर जाना चाहिए
लाज़िम है उस पे आ के करे इश्क़ का सवाल
लाज़िम है मुझ पे मुझको मुकर जाना चाहिए
शाना हिला के रोज़ ये कहता है मेरा क़ैस
अरसा हुआ अब आपको घर जाना चाहिए
हँसकर किसी ने हम से कहा आज से शजर
ग़म का लिबास दिल से उतर जाना चाहिए
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