ना मंज़ूर ज़मीर के आगे
चाहे जां हो तीर के आगे
पँखो ने दम तोड़ दिया है
पैरो की जंज़ीर के आगे
आखिर किसकी चलती है फिर
मालिक की शमशीर के आगे
जिस दुनिया में इतना कुछ है
पर क्या है इक पीर के आगे ?
जो भी तेरे नाम चलेगा
आयेंगे उस तीर के आगे
लाख बला के फिल्टर सिल्टर
कम, तेरी तस्वीर के आगे
हर गम का अब सब्र यही है
क्या मिलता तक़दीर के आगे ?
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