बोझ सर से उतारते हैं हम
तुझको कुछ यूँ निहारते हैं हम
ये तक़ाज़ा नहीं कि तू देखे
बाल फिर क्यूँ सँवारते हैं हम
फिर वही शख़्स दे रहा है ग़म
हर ख़ुशी जिस पे वारते हैं हम
देख कर हाल आशिक़ों का यूँ
अपनी हालत सुधारते हैं हम
As you were reading Shayari by Vineet Dehlvi
our suggestion based on Vineet Dehlvi
As you were reading undefined Shayari