ये ग़ज़ल जब भी गुनगुनाता हूँ

  - ALI ZUHRI

ये ग़ज़ल जब भी गुनगुनाता हूँ
दर्द-ए-दिल आपको सुनाता हूँ

अब जुदाई की खाई पर अक्सर
उसके ख़्वाबों का पुल बनाता हूँ

रात भर जागता हूँ ख़ुद भी और
उसकी तस्वीर भी जगाता हूँ

सर्द राहों पे खोल कर तस्में
उसकी जानिब क़दम बढ़ाता हूँ

मैं उसे ढूँढने की कोशिश में
अपना ही आप भूल जाता हूँ

  - ALI ZUHRI

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