उसने जो आँखों से की मैं बात नहीं समझा
आँखों वाला अंधा था जज़्बात नहीं समझा
वो ज़ाहिर कर देती थी बातों बातों में सब
मैं दिल से अंधा बहरा इक बात नहीं समझा
उसका रुकना या जाना तो मेरे बस में था
बस कहने की देरी थी उस रात नहीं समझा
इक मानी के बदले उसने जान थमा दी पर
मैं सौ में तेइस वाला ये बात नहीं समझा
फ़िर आती हूॅं जाते जाते मुड़ कर बोली वो
मैं वन मानुष सालों तक वो बात नहीं समझा
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