इसलिए भी अब तलक तन्हा हूँ मैं   - ZARKHEZ

इसलिए भी अब तलक तन्हा हूँ मैं  
अपना सानी ढूँढता रहता हूँ मैं

क्यों नहीं होती है उसके दिल में राह  
कोशिशों पर कोशिशें करता हूँ मैं

भेद कितने होते हैं मुझ पर अयाॅं
उसका चेहरा जब कभी पढ़ता हूँ मैं

पूछता है जब भी वो अहद-ए-वफ़ा  
अपनी बगलें झाँकता रहता हूँ मैं

हम-ख़याल ऐसा कि यूँ लगता है अब  
आईने के सामने बैठा हूँ मैं

एक सहरा है वो पर सैराब है
एक दरिया हूँ मगर प्यासा हूँ मैं

ये तो पढ़ने वालों पर है मुनहसिर  
इक हक़ीक़त हूँ या इक क़िस्सा हूँ मैं

दिलनशीं तो है ये आधा चाँद पर  
चौदहवीं के चाँद पर मरता हूँ मैं

- ZARKHEZ
0 Likes

More by ZARKHEZ

As you were reading Shayari by ZARKHEZ

Similar Writers

our suggestion based on ZARKHEZ

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari