अक्स जब तेरा मुझे उसमे मिला तो हॅंस दिया मैं
ग़ौर से देखा जो मैने आइना तो हॅंस दिया मैं
तोहमतें सब झेलता था लैला मजनूॅं खेलता था
एक पत्थर जब मेरे सर पे पड़ा तो हॅंस दिया मैं
मौत मुझ तक आ रही थी नूर सा इक छा रहा था
नूर के पीछे तिरा चेहरा दिखा तो हॅंस दिया मैं
मेरी साॅंसों की रवानी आख़िरी मंज़िल पे पहुॅंची
इंतिहा पे फिर मिली इक इब्तिदा तो हॅंस दिया मैं
मैं खड़ा शमशान में ताज़ा यतीमी चख रहा था
उस चिता में मैं जो लड़का सा दिखा तो हॅंस दिया में
रात दिन सींचा जिसे था मैंने अपने ऑंसुओं से
है अजब वो जब हुआ मुझसे जुदा तो हॅंस दिया मैं
हर तरफ़ अफ़सुरदगी थी हादसे थे बेकली थी
जो न दूजा रास्ता कोई दिखा तो हॅंस दिया मैं
हर सिपर को तोड़ता था मैं मुक़द्दर मोड़ता था
वार से अपने ही मैं जब ख़ुद गिरा तो हॅंस दिया मैं
मैं तो यूशा रो रहा था एक जमघट हॅंस रहा था
हाॅं मगर जब वो भी मुझपे हॅंस पड़ा तो हॅंस दिया मैं
As you were reading Shayari by Yusha Abbas 'Amr'
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