ये दिल फिर टूटता है इत्तिफ़ाक़न
मुझे तू फिर मिला है इत्तिफ़ाक़न
क़सम तेरी मैं पत्थर बन चुका हूॅं
ये ऑंसू गिर रहा है इत्तिफ़ाक़न
निगूँ रहता था जो पहलू में तेरे
वो सर अब कट चुका है इत्तिफ़ाक़न
जो आया बाद तेरे उसका चेहरा
तिरे चेहरे ही सा है इत्तिफ़ाक़न
तुझे मुझसे भी बदतर मिल गया है
ये मेरी बददुआ है इत्तिफ़ाक़न
मुझे हर जानलेवा हादसे में
तिरा चेहरा दिखा है इत्तिफ़ाक़न
बिल-आख़िर आज उस खाई किनारे
तिरा बेटा खड़ा है इत्तिफ़ाक़न
पुराना था हवा से गिर पड़ा था
नया पंखा लगा है इत्तिफ़ाक़न
इमरजेंसी के ख़ाने में अभी तक
तिरा नम्बर लिखा है इत्तिफ़ाक़न
था वादा तो न मुॅंह लगने का यूशा
अचानक लब हिला है इत्तिफ़ाक़न
As you were reading Shayari by Yusha Abbas 'Amr'
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