मेरे ग़म को मिली दवा ही नहीं
मैंने उस होंट को छुआ ही नहीं
कोशिशें उसने कीं बहुत लेकिन
दिल मिरा टूट के जुड़ा ही नहीं
सब समझते थे बस मैं तेरा हूॅं
तो कोई भी मिरा हुआ ही नहीं
ऐ ख़ुदा ऐसा दिन न दिखलाना
मुझे कहना पड़े ख़ुदा ही नहीं
मेरी ऑंखें बहीं तो बहती गईं
मैं उसे ग़मज़दा दिखा ही नहीं
मैंने की फिर से ख़ुदकुशी लेकिन
आइना ख़ाक में गड़ा ही नहीं
आशिक़ी फिर नई करो यूशा
शायरी में मज़ा बचा ही नहीं
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