अगर तुम मोहब्बत से अंजान होते - Prashant Kumar

अगर तुम मोहब्बत से अंजान होते
हमें देख कर यूँ न हैरान होते

अगर मुल्क को हक़ की बातें सिखाते
तो इंसान होते या भगवान होते

अरे कल तो ख़ुल्द-ए-बरीं जा रहा था
मिरे साथ तुम भी परेशान होते

निगाहें मिलाकर निगाहें चुराते
अगर तुम मोहब्बत में नादान होते

यही रात दिन बस दुआ माँगती थी
कि तुम मेरे दिल के ही मेहमान होते

अगर हाँ में होता तिरा फ़ैसला तो
मु'अम्मे मोहब्बत के आसान होते

अगर सबको नेकी कमाना सिखाते
तो मेरी नज़र में तुम इंसान होते

- Prashant Kumar
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