कल रात भर टूटा सितारा दर्द में बैठा रहा
और ये ज़माना बे-वजह पागल उसे कहता रहा
सोचा विचारी चल रही थी अब क़यामत आएगी
लेकिन हुआ कुछ भी नहीं अँगड़ाई वो लेता रहा
तू भी मुसाफ़िर है कोई मैं भी मुसाफ़िर हूँ मगर
तू आशिक़ी करता रहा मैं उम्र-भर चलता रहा
लब पर कभी रुख़सार पर जब मन हुआ बोसे लिए
ऐसे ही उसके पीछे-पीछे क़ाफ़िला चलता रहा
क्या क्या करें क्या क्या नहीं इस उम्र से वाक़िफ़ नहीं
सो रात-भर कल बज़्म में चर्चा यही होता रहा
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