सोचता हूँ अभी मुंसिफ़ को उछाला दे दूँ
छीनकर उसकी फ़क़ीरों को दुशाला दे दूँ
लूटकर तेरा फ़क़ीरों को ख़ज़ाना दे दूँ
और भी क्या-क्या है सर-ए-बज़्म हवाला दे दूँ
ऐ ख़ुदा मैं हूँ फटे हाल बता फिर करूँ क्या
छीन कर तेरा फ़क़ीरों को निवाला दे दूँ
झोपड़ा छोड़ अगर कोई अँधेरे में हो
तो मैं तो ख़ुद को जला करके उजाला दे दूँ
फ़र्श-ए-गुल ताज-महल ये तो पुराने हैं सब
आ मोहब्बत की निशानी में शिवाला दे दूँ
वो ख़रीदेगा नहीं कुछ भी दुकान-ए-दिल से
चल किसी और को साँसों का क़बाला दे दूँ
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