बाम-ए-फ़लक से एक गिरा महताब उठवा कर लाया हूँ
हुस्न-ए-महफ़िल में उसको रस्ता भटका कर लाया हूँ
देख ले अब तू फिर मत कहना आया नहीं था कूचे में
तेरी ख़ातिर कोरोना में जाम उठवा कर लाया हूँ
किसने बोला चुपके चुपके ख़ुद रंगीला हो आया
पूछ ले जाकर दो बोतल बढ़ती पिलवा कर लाया हूँ
ऐसे वैसे दुनिया में जो रिश्वत-ख़ोरी हाकिम थे
अब की उनके पिछवाड़े डंडे लगवा कर लाया हूँ
एक नज़र क्या देख लिया फिर पैर वहीं पर गाड़ दिए
यार बड़ी मुश्किल से दिल बहला फुसला कर लाया हूँ
As you were reading Shayari by Prashant Kumar
our suggestion based on Prashant Kumar
As you were reading undefined Shayari