दुनिया में जो आता है वो जाता है
जीवन भर का किससे किसका नाता है
दुनिया में कोई भी धर्म उठा कर देखो तुम
प्रेम का ढाई अक्षर ही सिखलाता है
शौक़ के रस्ते पर जो चलता जाता है
अपनी मंज़िल से ही भटकता जाता है
जब भी हम हँसने की कोशिश करते हैं
रोता हुआ फिर इक बच्चा दिख जाता है
दर्द की चीख़ें सब में सुनाई देती हैं
ज़ख़्मी है इक ताइर मुझको बुलाता है
ख़्वाब चुराने की जब कोशिश होती है
इतने में आँसू पलकों पर आ जाता है
मैं दुनिया को हर्फ़-ए-करम समझाता हूँ
और ज़माना रंजिश फ़न सिखलाता है
मैं हरदम कूड़ा उठवाता रहता हूँ
लेकिन वो सब में जूठन फैलाता है
दुनिया में जो दर्द तुम्हारे होता है
दर्द वही सबके हिस्से में आता है
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