मस्जिद भी हिल गईं अरे मंदिर भी हिल गए
अल्लाह के गले से जो भगवान मिल गए
चल कम से कम कि ज़िंदगी तुझको तो मिल गई
हम तो जनम से पहले ही मिट्टी में मिल गए
ये लोग कैसे ज़िंदगी जी लेते चार दिन
हम तो बस एक पल में ही बक्से में सिल गए
फिर हाथ से ही क़ौम के तलवार गिर गई
सब लोग साथ में जभी काबे में मिल गए
चीखें उठी हैं भूख से ऐसी फ़क़ीर की
दैर-ओ-हरम की नींव के पत्थर भी हिल गए
मंज़ूर हैं शुरू से ग़म-अंगेज़ ही मुझे
फिर क्यूँ इधर गुज़र के तिरे ग़म-गुसिल गए
जिनको कभी जहान ने मिलने नहीं दिया
वो दिल ख़ुदा के शुक्र से जन्नत में मिल गए
ढूँढे थे हम ख़ुदा को न पूछो कहाँ कहाँ
लुटते हुए कि क़ाफ़िलों में वो भी मिल गए
ग़ैरों के जुर्म से कभी अपनों की मार से
जीते जी मिल नहीं सके जन्नत में मिल गए
हरदम हुए हैं जुर्म मोहब्बत के फूलों पर
जो खिल नहीं सके यहाँ जन्नत में खिल गए
ऐसे भी लोग थे मिले दुनिया की भीड़ में
ख़ुद टाँके काट कर मिरे ज़ख़्मों को सिल गए
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